ओम जय जगदीश हरे -भगवान विष्णु की आरती| Om Jai Jagdish Hare Aarti - Meenashvihindi
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ओम जय जगदीश हरे -भगवान विष्णु की आरती| Om Jai Jagdish Hare Aarti

ओम जय जगदीश हरे आरती विश्व भर में बहुत लोकप्रिय है! घर में धार्मिक पाठ-पूजा के बाद आरती ओम जय जगदीश हरे ज़रूर गाई जाती है। यह देश-विदेश में बसने वाले हर हिंदू को याद है। यह भगवान विष्णु जी को समर्पित आरती है। इस आरती की रचना पंडित श्रद्धा राम फुलौरी ने की थी। इस आरती को हर उत्सव व पूजा समारोह में गाया जाता है। 

इस आरती में भगवान विष्णु जी की महिमा गाई जाती है कि कैसे भगवान एक पल में अपने सेवक के कष्ट हर देते हैं! जो विष्णु भगवान का ध्यान करता है उस भक्त को उनकी कृपा प्राप्त होती है! उस भक्त के घर में खुशियां व खुशहाली आ जाती है! शरीर की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं! भक्त प्रभु से कहता है कि आप ही मेरे माता-पिता हैं! मेरा दुनियां में आपके सिवा दूजा कोई नहीं है जिसके चरणों का सहारा लूं! 

  

ओम (ॐ) जय जगदीश हरे, स्वामी। 

जय जगदीश हरे।

भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ 

ॐ जय जगदीश हरे।

 

जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।

स्वामी दुःख विनसे मन का।

सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥

 ॐ जय जगदीश हरे।

 

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी।

स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।

तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ 

ॐ जय जगदीश हरे।

 

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।

स्वामी तुम अन्तर्यामी। 

पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ 

ॐ जय जगदीश हरे।

 

तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।

 स्वामी तुम पालन-कर्ता।

मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ 

ॐ जय जगदीश हरे।

 

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति। 

स्वामी सबके प्राणपति।

किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥

ॐ जय जगदीश हरे।

 

दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे। 

स्वामी तुम ठाकुर मेरे।

अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे॥ 

ॐ जय जगदीश हरे।

 

विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा। 

स्वमी पाप हरो देवा।

श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, संतन की सेवा॥ 

ॐ जय जगदीश हरे।

 

जगदीश्वर जी की आरती, जो कोई नर गावे। 

स्वामी जो कोई नर गावे।

कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥ 

ॐ जय जगदीश हरे।

 

भगवान गणपति जी की आरती के लिए क्लिक करें- गणेश जी की आरती

 

 

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